तेजज्ञान यह शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है - तेज और ज्ञान। तेज का अर्थ है - जो दो के पार है - जो मन और बुद्धि क्षेत्र के पार यानी बियोंड है - जहाँ ONENESS की अनुभूति है - जो हमारी वास्तविक पहचान है उसका ज्ञान अर्थात तेजज्ञान है..! जो स्वयंबोध के बाद समझ में आता है। स्वयं का बोध तब होता है जब हमें 'मैं कौन हूँ' इस प्रश्न का उत्तर स्व-अनुभव से पता चलता है। स्व-अनुभव हमें तब होता है जब हमें पता चलता है कि ‘हमारा होना’ शरीर और मन से अलग है। तेजज्ञान वह ज्ञान है जो खोजियों को मिलता है, और यह ज्ञान मिलने के बाद खोजी विलीन होता है। तेजज्ञान शब्दों वाला ज्ञान नहीं है, बल्कि यह स्व-अनुभूति से जानने का ज्ञान है, जो तेजगुरु सरश्री जी के प्रत्यक्ष उपस्थिति में हर खोजी आत्मसात करता है।
दुनिया में ऐसा कौना सा ज्ञान है, जिसे जानने के बाद इन्सान के सारे दुःख, सारे बंधन एक साथ विलीन होते है; जिस की तलाश आध्यात्म का हर खोजी जीवन भर करता है; वह ज्ञान है, तेजज्ञान! तेजज्ञान अर्थात जो ‘दो’ के पार है, जो परंम है। जिसे आध्यात्म में ‘स्व’ ज्ञान या आत्म ज्ञान भी कहां जाता है। तेजज्ञान - वह ज्ञान है, जो मन और बुध्दी के पार, केवल स्वंय की अनुभिती से ही, जाना जा सकता है। ऐसा, परंम ज्ञान वे ही प्रदान कर सकते है, जो ‘स्व’ ज्ञान की अनुभुती में स्थापित है, जिन्हे 'तेजगुरु' कहा जाता है।
तेजज्ञान - वह ज्ञान है, जो मन की जानकारी और बुध्दी के तर्क-वितर्क के पार है, जो ‘स्व’ साक्षात्कार के बाद एक ‘समझ’ के रुप मे प्रकट होता है। यही ‘समझ’ सरश्री महाआसमानी शिविर मे एक अनोखे क्रमबध्द तरीके से प्रदान करते है। हसते हसाते, बहोत सहजता से, सरश्री, सभी गलत मान्यताओं से मुक्त कर, हर खोजी को आत्मसाक्षात्कार की मंजील तक पहुंचाते है। इसी अनुष्ठी ‘स्व’ ज्ञान की विधी को आज विश्वभर में बेस्ट सिस्टम फॉर विज्डम के रुप मे जाना जा रहा है। इसी विशिष्ट प्रणाली से महाआसमानी शिविर मे तेजज्ञान प्रदान किया जाता है।