
सरश्री - आज की सदी के एक ऐसे आध्यात्मिक गुरु है, संत है, स्पिरीच्युअल मास्टर है - जिन्होने जीवन के अंतीम सत्य को जाना है, यानी मुक्ती की, मोक्ष की परंम अवस्था को पाया है। सदा ‘स्व’ अनुभुती में स्थापित - सरश्री जी की पावन उपस्थिती में हर साधक को, अद्भूत आनंद और मौन का अनुभव होता है; हर एक खोजी ज्ञान और भक्ती के सागर मे घुल जाता है, खो जाता है।
सरश्री - आधुनिक समय के पारखी है, जिन्होने अध्यात्म के बिखरे हुए ज्ञान को, मान्यताओं से मुक्त कर, एक परिशुद्ध आध्यात्मिक प्रणाली प्रदान की है। अध्यात्म से लुप्त हुई कई महत्वपूर्ण कडीयों को, रहस्यों को, सरश्री जी ने आज की भाषा में उजागर किया है, जिससे आध्यात्मिक ज्ञान को पूर्णता प्राप्त हुई है, इसी संपूर्ण ज्ञान को आज हम ‘तेजज्ञान’ के रूप में जानते है। सरश्री जी अक्सर कहते है, ईश्वर ही है, तुम हो की नही, यह पता करो, पक्का करो..!
सरश्री जी का आध्यात्मीक सफर, उनके बचपन से ही आरंभ हुआ। तभी से जीवन के अंतीम सत्य को जानने की जिज्ञासा उनके अन्दर प्रकट होने लगी। इस प्यास के चलते, उन्होने कई आध्यात्मीक ग्रंथों का अध्ययन किया तथा कई प्रकार की ध्यान साधनाओं पर निरंतरता से कार्य किया। अंतीम सत्य के रहस्य को जानने के लिए उन्होने दिर्घ समय तक मनन करते हुए अपनी खोज जारी रखी। जिसके अंत में उन्हे आत्मबोध प्राप्त हुआ - एक ऐसी परंम अवस्था, जो भगवान बुद्ध, भगवान महावीर, संत ज्ञानेश्वर, संत मिरा जैसे, महानतम् विभुतीयों को प्राप्त हुई थी। यह समय था, 15 अगस्त 1989 के आस पास का ! आत्मसाक्षात्कार के बाद उन्होंने यह जाना कि अध्यात्म का हर मार्ग जिस कडी से जुडा है, वह है – ‘समझ’ – The Understanding.
सरश्री कहते है, “अध्यात्म के, सभी मार्गों की, शुरूआत अलग-अलग प्रकार से होती है लेकिन सभी के अंत में एक ही ‘समझ’ प्रकट होती है। ‘समझ’ ही सब कुछ है, और यह ‘समझ’ अपने आप में पूर्ण है।” सरश्री कहते हैं, “आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति के लिए इस ‘समझ’ का श्रवण ही पर्याप्त है।”
वास्तव मे, सरश्री - यह शब्द उनके मनोदेह को संबोधित नही करता, बल्कि ‘सरश्री’ यह एक स्वबोध की अवस्था है, और उनका मनोशरीर कुदरत की उच्चतम -अनुपम व्यवस्था है। सरश्रीजी की वाणी साक्षात् सत्य का जिंदा झरना है जो आकाशवाणी से कम नहीं है। वे आध्यात्म की गहनतम् बातों को आज की भाषा मे, आज के उदाहरणों से बहोत ही सिधे-सरल तरीके से समझते है। सरश्री जी ने स्वज्ञान एवं आध्यात्म से, जुडे हर पहलु पर हर विषय पर मार्गदर्शन दिया है। सरश्री जी कहते है, आज विश्व को किसी नये धर्म की जरुरत नही है, बल्कि सभी धर्मो को जोडने वाले ‘समझ’ के धागे की जरुरत है। सरश्री जी द्वारा, तीन हजार से भी, ज्यादा प्रवचन आये हैं। तथा सौ से भी ज्यादा ग्रंथों की रचना उनके द्वारा हुई है। यह सभी पुस्तके दस से भी अधिक भाषाओं में अनुवादीत हुई है।
आज की सदी में, सत्य के हर खोजी के लिए, अध्यात्म के हर साधक के लिए, सरश्री प्रथम और अंतीम मंजील हैं। उनके द्वारा बनाई गई, तेजज्ञान की प्रणाली, हर इंसान की उच्चतम संभावना को, खोलने की महत्वपूर्ण कुंजी है। जिसका, उपयोग कर, हम सभी को, अपने जीवन को सफल बनाना चाहिए।